ऑपरेशन सिंदूर के बाद रूस, अमेरिका से लेकर यूरोप तक तमाम बड़े देश खुलकर भारत का समर्थन करते नजर आए। भारत पर संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद-51 के उल्लंघन यानी संतुलित कार्रवाई के बजाय सीधा सैन्य हमला करने का रोना रोने के बावजूद पाकिस्तान मुस्लिम देशों तक का समर्थन हासिल नहीं कर पाया था। पूरी दुनिया में 50 से ज्यादा मुस्लिम देश हैं लेकिन तुर्किये और अजरबैजान को छोड़कर कोई पाकिस्तान के साथ खड़ा होते नहीं दिखना चाहता था। अब जबकि संघर्ष विराम लागू हो चुका है, यह सवाल बदस्तूर कायम है कि आखिर ये दो देश ही पाकिस्तान के सुर में सुर क्यों मिला रहे थे?
विशेषज्ञों के मुताबिक, निहित स्वार्थ में उलझे कुछ देशों को छोड़कर तकरीबन सभी मुस्लिम देश अब पाकिस्तान की यह असलियत जान चुके हैं कि वह मजहब के नाम पर आतंकवादी नेटवर्क को पाल-पोस रहा है और इसका इस्तेमाल भारत और अन्य पड़ोसी देशों में हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए करता है।
धर्म के चश्मे से नहीं…कूटनीतिक व आर्थिक दृष्टिकोण पर दिया ध्यान
मुस्लिम देशों का रुख भारत-पाकिस्तान तनाव को धर्म के चश्मे से देखने के बजाय कूटनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण पर केंद्रित रहा। इसे पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका माना गया क्योंकि इस्लामाबाद लंबे समय से खुद को दक्षिण एशिया में इस्लाम के झंडाबरदार के तौर पर करता रहा है। यह अलग बात है कि भारत में मुसलमानों की संख्या कम नहीं है। बल्कि यहां तो दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी रहती है।
सऊदी अरब-यूएई ने पहले ही बनाई दूरी
सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) जैसे देश पाकिस्तान को काफी धन मुहैया कराते रहे हैं लेकिन तेजी से बदलती भू-राजनीतिक स्थितियों के बीच दोनों देश पहले से ही पाकिस्तान से किनारा कर भारत के करीब आते दिख रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, इस्लामी दुनिया ने महसूस किया है कि पाकिस्तान कश्मीर मसले को बातचीत से हल ही नहीं करना चाहता बल्कि पहलगाम जैसे जघन्य हमलों की साजिश में जुटा है। सरकार और फौज दोनों ही आवाम के बीच अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए कश्मीर राग आलापते रहते हैं।
तुर्किये क्यों कर रहा पाकिस्तान का समर्थन?
तुर्किये के राष्ट्रपति रेसेप तैयप अर्दोआन लंबे समय से ऑटोमन साम्राज्य की तर्ज पर पूरी इस्लामी दुनिया के अगुआ बनकर अपने देश का प्राचीन रुतबा लौटाना चाहते हैं। अर्दोआन की इस महत्वाकांक्षा को पाकिस्तान सरकार और शीर्ष सैन्य नेतृत्व का समर्थन मिलता रहा है। यही वजह है कि तुर्किये ने पाकिस्तान को ड्रोन और अन्य साजो-सामान मुहैया कराया। विश्लेषकों की मानें तो तुर्किये इस्लामिक सहयोग संगठन या ओआईसी में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है। 57 सदस्यीय ब्लॉक में सऊदी अरब और ईरान का वर्चस्व है और तुर्किये एक इस्लामी राष्ट्र के समर्थन के नाम पर अपनी लोकप्रियता बढ़ाना चाहता है।
अजरबैजान तो तुर्किये का पिट्ठू बना
अजरबैजान की स्थिति थोड़ी अलग है। सीधे तौर पर पाकिस्तान का समर्थक न होने के बावजूद अजरबैजान तुर्किये के साथ घनिष्ठ राजनयिक, आर्थिक, रक्षा और सांस्कृतिक संबंधों के कारण भारत विरोधी पाले में खड़ा दिखा। अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव अक्सर भारत को लेकर तल्ख रवैया अपनाते रहे हैं। विशेषज्ञ इसे अंकारा का उपग्रह तक करार दे रहे थे। अजरबैजान के पाकिस्तान के साथ संबंध आर्मेनिया के खिलाफ 2020 की जंग के दौरान ही विकसित हुए थे जब इस्लामाबाद ने बाकू का खुलकर समर्थन किया और उसे सैन्य समर्थन की पेशकश भी की।